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शिक्षामित्रों के अल्प मानदेय पर रचित कविता ) महंगाई का मातम

 

( शिक्षामित्रों के अल्प मानदेय पर रचित कविता )

महंगाई का मातम


महंगाई का छाया मातम,

कैसे चले खर्चा।

डिप्रेशन से भरी जिन्दगी,

जारी है ओ चर्चा।।


अल्प मानदेय चलते,

गुजारा कैसे करूं।

टूटही मड़ई चूता छप्पर,

कैसे दिल धीरज धरूं।।


हम सबकी जिन्दगी,

खा रही महंगाई डायन।

कर्ज का मातम छाया है,

कैसे रोटी खायन।।


ए सरकार नही बूझ रही,

हम सबका ओ दर्द। 

विन कपड़ो के मर रहे,

बढ़ी हुयी है सर्द।।


शौक हमने भी पाले हैं,

पर है तो मजबूरी।

कैसे शौक पूरे हों भैया,

जो इतनी कम मजदूरी।।


कलम से

कमलेश कुमार कारुष 

मिर्जापुर

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