*पराली जलाने वालों पर होगी सख्त कार्रवाई — जिलाधिकारी ने दिए स्पष्ट निर्देश*
*जागरूकता से नियंत्रण तक — जिलाधिकारी ने शुरू किया व्यापक अभियान रोकेंगे पराली जलाने की प्रवृत्ति*
निराला साहित्य संवाद,
अम्बेडकर नगर। 16 अक्टूबर 2025 जिलाधिकारी श्री अनुपम शुक्ला की अध्यक्षता में आज कलेक्ट्रेट सभागार में फसलों के अवशेष (पराली) जलाये जाने से उत्पन्न हो रहे प्रदूषण की रोकथाम एवं जनपद स्तरीय कृषक जागरूकता कार्यक्रम के संबंध में एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की गई।
बैठक का मुख्य उद्देश्य पराली जलाने से होने वाले पर्यावरणीय दुष्प्रभावों की रोकथाम, कृषकों को इसके प्रति जागरूक करना, तथा मा० सर्वोच्च न्यायालय एवं मा० राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एन०जी०टी०) द्वारा निर्गत दिशा-निर्देशों के अनुपालन को सुनिश्चित करना रहा।
उप निदेशक कृषि द्वारा बैठक में बताया गया कि पराली जलाने से वायु प्रदूषण में अत्यधिक वृद्धि होती है, जिससे श्वसन संबंधी रोग, दृष्टि अवरोध, मृदा की गुणवत्ता में कमी, एवं जलवायु परिवर्तन जैसी गंभीर समस्याएं उत्पन्न होती हैं। इसके दृष्टिगत, जनपद में एक नियंत्रण एवं अनुश्रवण सेल (Monitoring Cell) का गठन किया गया है, जो प्रतिदिन पराली जलाने की घटनाओं की समीक्षा, अनुश्रवण एवं रिपोर्टिंग करेगा। साथ ही प्रत्येक ग्राम पंचायत में ग्राम प्रधान एवं क्षेत्रीय लेखपाल को निर्देशित किया गया है कि वे अपने क्षेत्र में किसी भी दशा में पराली अथवा कृषि अपशिष्ट जलने की घटना न होने दें। ऐसे मामलों की सूचना तत्काल उच्चाधिकारियों को दी जाए और दोषी व्यक्तियों के विरुद्ध नियमानुसार दण्डात्मक कार्यवाही की जाए।
जिलाधिकारी श्री अनुपम शुक्ला ने कहा कि कृषि अपशिष्ट जलाना न केवल पर्यावरण के लिए हानिकारक है, बल्कि इससे किसानों की भूमि की उर्वरता में भी कमी आती है। उन्होंने यह भी कहा कि पराली को नष्ट करने के बजाय उसे प्राकृतिक संसाधन के रूप में पुनः उपयोग में लाया जा सकता है। किसानों को पराली प्रबंधन हेतु मल्चर, सुपर स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम, हैप्पी सीडर, रोटावेटर, ज़ीरो टिल सीड ड्रिल आदि आधुनिक उपकरणों का उपयोग करना चाहिए।
जिलाधिकारी ने अधिकारियों को निर्देशित किया कि वे अपने-अपने तहसील क्षेत्रों में जागरूकता रथ, कृषक गोष्ठियों, पंपलेट वितरण, आडियो-विजुअल माध्यमों और लोकल रेडियो प्रसारण के माध्यम से किसानों को जागरूक करें। उन्होंने कहा कि पराली जलाने से मिट्टी की जैविक संरचना नष्ट होती है, भू-नमी कम होती है तथा लाभकारी जीवाणु समाप्त हो जाते हैं, जिससे फसलों की उत्पादकता प्रभावित होती है। उन्होंने यह भी कहा कि पराली प्रबंधन में सामूहिक सहयोग आवश्यक है। ग्राम प्रधान, कृषक समितियाँ, स्वयंसेवी संगठन तथा कृषि विभाग मिलकर यदि पराली जलाने की प्रवृत्ति को रोकने का प्रयास करें।
जिलाधिकारी ने स्पष्ट निर्देश दिए कि जिन कृषकों द्वारा पराली जलाने की पुष्टि होने पर उनके विरुद्ध एन०जी०टी० के निर्देशानुसार दण्डात्मक कार्रवाई सुनिश्चित की जाए। उन्होंने बताया कि पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार की अधिसूचना दिनांक 06 नवम्बर 2024 के अनुसार पर्यावरण क्षति की भरपाई हेतु पर्यावरण क्षतिपूर्ति वसूली का प्रावधान किया गया है। इसके तहत 02 एकड़ से कम क्षेत्रफल वाले कृषकों से ₹5,000, 02 से 05 एकड़ वाले से ₹10,000 तथा 05 एकड़ से अधिक क्षेत्रफल वाले कृषकों से ₹30,000 तक की वसूली की जाएगी। यह वसूली राजस्व विभाग द्वारा की जाएगी। साथ ही, राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम की धारा-24 के अंतर्गत क्षतिपूर्ति की वसूली एवं धारा-26 के तहत उल्लंघन की पुनरावृत्ति होने पर कारावास और अर्थदंड की कार्यवाही भी की जाएगी। इस ऑफर पर जिलाधिकारी समस्त हार्वेस्टर मालिकों को निर्देशित किया कि कोई भी हार्वेस्टर बिना सुपर स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम (एस एम एस) के संचालित ना किया जाए। निर्देशों की अवहेलना पाए जाने पर संबंधित हार्वेस्टर कोशिश करने की कार्रवाई सुनिश्चित की जाएगी। बैठक के अंत में जिलाधिकारी ने कहा कि जनपद में सभी विभाग परस्पर समन्वय स्थापित करते हुए फसलों के अवशेष जलाने की घटनाओं की सतत निगरानी करें और हर स्तर पर प्रभावी नियंत्रण व जनजागरूकता अभियान चलाया जाए, जिससे वायु गुणवत्ता में सुधार हो और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में ठोस परिणाम प्राप्त किए जा सकें।
बैठक में उप निदेशक कृषि अश्विनी सिंह, परियोजना निदेशक डीआरडीए, जिला पंचायती राज अधिकारी, कृषि विभाग के अधिकारी तथा अन्य संबंधित विभागों के साथ साथ जनपद के हार्वेस्टर मालिक एवं एफपीओ के प्रतिनिधि तथा कृषक बंधु उपस्थित रहे। बैठक में समस्त उप जिलाधिकारी एवं खंड विकास अधिकारियों द्वारा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से प्रतिभाग किया गया।
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